लव जिहाद’ के भ्रम को पैदा कर चरमपंथियों के घृणित, सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं।

धर्म स्वतंत्रता कानून या एक धर्म की स्वतन्त्रता
उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2018
उत्तराखंड राज्य में 01 जनवरी 2018 को प्रकाशितऔर प्रारंभ हुआ । जिसमें निम्न प्रावधान वा व्याख्या की गई।
(ए) “प्रलोभन” का अर्थ है और इसमें किसी भी उपहार या परितोष या भौतिक लाभ के रूप में किसी भी प्रलोभन की पेशकश शामिल है, चाहे वह नकद या वस्तु के रूप में हो या रोजगार, किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित प्रतिष्ठित स्कूल में मुफ्त शिक्षा, आसानी से पैसा कमाना, बेहतर जीवनशैली, दैवीय आनंद या अन्यथा;
(बी) “धर्मांतरण के लिए राजी करना” का अर्थ है किसी व्यक्ति को अपना धर्म त्याग कर दूसरा धर्म अपनाने के लिए सहमत कराना;
(सी) “बल” में बल का प्रदर्शन या धर्मांतरित व्यक्ति या धर्मांतरित होने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति या संपत्ति को किसी भी प्रकार की चोट पहुंचाने की धमकी शामिल है, जिसमें दैवीय नाराजगी या सामाजिक बहिष्कार की धमकी भी शामिल है।
(डी) “धोखाधड़ी” में किसी भी प्रकार का गलत बयान या कोई अन्य धोखाधड़ी युक्ति शामिल है;
(इ) “जबरदस्ती” का अर्थ है किसी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक दबाव या शारीरिक बल का प्रयोग करके उसकी इच्छा के विरुद्ध कार्य करने के लिए मजबूर करना, जिससे उसे शारीरिक चोट पहुंचे या उसकी धमकी मिले;
(एफ) “अनुचित प्रभाव” का अर्थ है एक व्यक्ति द्वारा दूसरे पर अपनी शक्ति या प्रभाव का अविवेकी प्रयोग, ताकि दूसरे व्यक्ति को ऐसे प्रभाव का प्रयोग करने वाले व्यक्ति की इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए राजी किया जा सके;
(जी) “धर्मांतरण” का अर्थ है एक धर्म को त्यागकर दूसरा धर्म अपनाना;
(एच) “नाबालिग” का अर्थ अठारह वर्ष से कम आयु का व्यक्ति है;
(मैं) “धर्म” से तात्पर्य भारत या इसके किसी भाग में प्रचलित आस्था, विश्वास, पूजा या जीवन शैली की किसी संगठित प्रणाली से है, तथा उसे किसी कानून या वर्तमान में लागू प्रथा के अंतर्गत परिभाषित किया गया है;
(जे) “धार्मिक पुजारी” से तात्पर्य किसी भी धर्म के पुजारी से है जो किसी भी धर्म का शुद्धिकरण संस्कार या धर्म परिवर्तन समारोह संपन्न कराता है और उसे चाहे किसी भी नाम से पुकारा जाए जैसे पुजारी, पंडित, मुल्ला, मौलवी, फादर आदि;
(क) इस अधिनियम में प्रयुक्त और इसमें परिभाषित नहीं किये गये किन्तु भारत या उत्तराखंड राज्य में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में परिभाषित शब्दों और अभिव्यक्तियों के वही अर्थ होंगे जो उनके लिए हैं।
मिथ्या निरूपण, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन का प्रतिषेध। कोई भी व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को मिथ्या निरूपण, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में प्रत्यक्षतः या अन्यथा रूप से संपरिवर्तित नहीं करेगा या संपरिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही कोई व्यक्ति ऐसे संपरिवर्तन के लिए उकसाएगा या षड्यंत्र रचेगा:
बशर्ते कि यदि कोई व्यक्ति अपने पैतृक धर्म में वापस आता है तो उसे इस अधिनियम के तहत धर्म परिवर्तन नहीं माना जाएगा। यह भेदभावपूर्ण कानून की अनदेखी मुस्लिम एवं मसीह समाज को कितनी महंगी पड़ेगी और इसके क्या दूर गामी परिणाम होंगे ।
इसका अंदाजा 2018 में जब यह कानून बनाया गया और इसके बाद 2022 में जब इसमें बदलाव किया गया शायद नहीं था इसलिए लाख समझाने के बाद भी इन दोनों समाजों के दानिशवरों ने इस कानून की कोर्ट में समीक्षा करने की जहमत ही नहीं की और न इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की । अब जब सर से ऊपर पानी पहुंच गया तो अब असहाय हाथ मलने के सिवाय कुछ नहीं । घर वापसी का प्रायोजित कार्यक्रम कानूनी तौर से पूरे शबाब पर हैं।और लव जिहाद का झूठा खेल कर घर वापसी के लिया सुरक्षा कवच तैयार किया जा रहा हैं और समाज में दोनों संप्रदायों के लिए घृणा को परोसा जा रहा हैं।
अगर किसी मुसलमान लड़के ने किसी हिंदू लड़की के साथ स्वेच्छा से भी शादी कर ली यह पहले से शादी हो रखी हैं तो उसको लव जिहाद नाम देकर धर्मांतरण के मुकदमे कायम कराए जाते हैं इसी तरह से धर्मांतरण के नाम पर मसीह समाज के लोगों पर भी मुक़दमा दर्ज कराए जाते हैं इसके विपरीत अगर किसी हिंदू समाज के लड़के ने किसी मुस्लिम समाज की लड़की के साथ उन सारे हथकंडों को अपना कर जिसका उल्लेख उपरोक्त कानून के अंदर किया गया है और जो प्रत्यक्ष रूप से साबित भी होता हैं
इस कानून के तहत वह शादी विवाह घर वापसी की श्रेणी में आती हैं और उसके लिए कोई धर्मांतरण की धाराएं नहीं लगाई जा सकती यह वास्तव में एक भेदभाव कानून के अलावा एक दमनात्मक प्रयोजन हे जिसकी अदालत में समीक्षा होनी चाहिए थी मगर वक्त रहते दोनों समाजों ने इस पर कोई विचार नहीं किया और अब यह सिलसिला दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और यह इसका दानव दिनों दिन मुस्लिम लड़कियों का ईमान निगल रहा हैं। लड़कियों के माता-पिता कोर्ट कचहरी के चक्कर काट कर थक हार कर बैठ जाते हैं और कहीं से कोई न्याय नहीं मिलता है ।
लव जिहाद’ के भ्रम को पैदा कर चरमपंथियों के घृणित, सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं।
अब इस कानून से उपजे परिणाम हमारे सामने हैं।
1. इस कानून की संवैधानिकता का परीक्षण होना चाहिए।
2. दूसरे अपने समाज की महिलाओं और लड़कियों से निरन्तर वार्तालाप होनी चाहिए और उनको सही अकीदो की पूरी व्याख्या आसान लफ्जों में समझानी चाहिए।
3. मोबाईल और सोशल मीडिया के नुकसान से बा खबर करना चाहिए।
4. शादियों को आसान कम खर्च बनाना चाहिए ताकि वक्त रहते सुन्नत तरीके से शादियां हो सके।
अपने बच्चों को इर्तेदाद की आग से बचाओ याद रहे एक्सीडेंट से भली एहतियात हैं। समाज में भी व्यापक सुधार की जरूरत है और इसकी शर्त है पूर्ण दीनदारी।