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सहारनपुर की बेटी ने नामुमकिन को किया मुमकिन, 20 साल की उम्र में कैलीग्राफी से लिखा क़ुरआन।

सहारनपुर की बेटी ने नामुमकिन को किया मुमकिन, 20 साल की उम्र में कैलीग्राफी से लिखा क़ुरआन।

सहारनपुर की बेटी ने नामुमकिन को किया मुमकिन, 20 साल की उम्र में कैलीग्राफी से लिखा क़ुरआन।

सहारनपुर की बेटी ने किया ज़िलें का नाम रोशन, सभी के लिये यह गर्व की बात…

सहारनपुर:- प्रत्येक इंसान एक जैसा ही काम कर रहा है, वहीं पढऩा, वही नौकरी और फिर रोज़मर्रा की वहीं एक सी जिंदगी लेकिन हममें से ही कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कि भीड़ से हटकर कुछ करने की चाह रखते हैं और अपनी अलग पहचान बनाते हैं, एक ऐसा ही कारनामा करके दिखाया है,

गंगोह निवासी अब्दुल कलाम साबरी की बेटी शगुफ़ा साबरी ने, जिसने कोरे पन्नों पर पूरे क़ुरआन लिखा, गंगोह की यह होनहार बेटी एक चित्रकार और सजावटी कलाकार व कैलीग्राफीक भी है, कहते हैं इंसान के लिए न उम्र मायने रखती है और न ही साधन, संसाधन क्योंकि अल्लाह की सर्वश्रेष्ठ कृति इंसान के अंदर इच्छाशक्ति एक ऐसा गुण है। जो बड़े से बड़े पहाड़ को चीरकर रास्ता बना सकता है इसी लिए मशहूर शायर डॉ नवाज़ देवबंदी ने भी कहा है कि- अंजाम उसके हाथ है आग़ाज़ करके देख, भीगे हुए परों से ही परवाज़ करके देख..ऐसी ही मिसाल पेश की है जनपद सहारनपुर के ग्रामीण परिवेश गंगोह क्षेत्र में पली बढ़ी अब्दुल कलाम साबरी की प्यारी बेटी शगुफ़ा साबरी ने जिन्होंने मात्र 20 वर्ष की आयु में कैलीग्राफी के ज़रिए क़ुरआन शरीफ को लिख दिया है, गौरतलब है कि क़ुरआन शरीफ में कुल 30 पारे हैं, जिनमे 114 सूरह अर्थात अध्याय हैं,

जिनमे कुल 6666 आयते अर्थात श्लोक हैं, अरबी भाषा में होने के चलते इसे हाथ से लिखना भारतीय लोगों के लिए ख़ासा मुश्किल काम है फिर कैलीग्राफी के ज़रिए लिखना तो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, शगुफ़ा साबरी की बड़ी बहन सौलत ज़बी ने बताया कि गंगोह से उनके पिता अब्दुल कलाम साबरी परिवार सहित कई सालों से देहरादून आदर्श नगर में रहने लगें है, वही से छोटी बहन शगुफ़ा साबरी ने पवित्र क़ुरआन लिखा है,

कोरे पन्नों पर पूरे क़ुरआन को लिखकर इतिहास रच डाला है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है जब कैलीग्राफी से कागज़ के पन्नों पर क़ुरआन लिखा गया है। इससे पहले कभी भी ऐसा नहीं किया गया है, इस कलाकार होनहार बेटी ने कैलीग्राफी से क़रीब 2 साल में कला के इस अद्भूत नज़ारे को दुनिया के समक्ष पेश किया है,

अब सवाल ये आता है कि आपकों ऐसा करने की कहां से सूझी तो इस सवाल पर शगुफ़ा साबरी का यहीं कहना था कि जब उसे इस बात का पता चला कि अब तक क़ुरआन विभिन्न सामग्रियों पर लिखा जा चूका है। लेकिन कैलीग्राफी पर कभी भी नहीं लिखा गया है तो उसने ऐसा करने की ठान ली और 2 सालों की मेहनत से इस काम को पूरा किया, उनका कहना है कि ड्राइंग का मुझे बचपन से शोख़ रहा है, कैलीग्राफी की भी कोई क्लास नही ली, जब भी समय मिलता था तो कैलीग्राफी पेंटिग बनाया करती थी,

अचानक मन में आया कि पवित्र क़ुरआन को अपने हाथों से लिखूं, कुछ नया करने का सपना लेकर मन से मैने यह क़ुरआन शरीफ लिखा, मेरा सपना है कि में यह क़ुरआन को मक्का लेकर जाऊं और अपने सपने को साकार करूँ, शगुफ़ा साबरी ने क़ुरआन को लिखने में अपने परिजनों का आभार व्यक्त किया है उसने कहा अगर परिवार का साथ ना होता तो शायद में इस अपने मक़सद में कभी कामयाब ना होती, उनके साथ और स्पोर्ट से ही आज मुझे यह मुक़ाम हासिल हुआ है, कम उम्र में शगुफ़ा साबरी द्वारा क़ुरआन लिखने पर उनके पिता और परिवार में ख़ुशी का माहौल है,जिसे भी यह जानकारी मिल रही है सभी लोग शगुफ़ा साबरी व उनके परिवार को बधाई दे रहें है, सहारनपुर की बेटी द्वारा क़ुरआन को कैलीग्राफी से कोरे पन्नों पर लिखना यह सहारनपुर के लिये गर्व की बात है, कहते है सफलता इंसान की उम्र देख कर नहीं आती है, मन में लगन हो और मेहनत कर पाने की छमता तो वो इंसान पूरी दुनिया के आगे मिसाल। बन जाती है,

Uttrakhand

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