पहाड़ की एक मां का दर्द – बेटा 12वीं पास कर गया अब क्या करें, राह अंधेरी – सेना में जाने की परम्परा थी, चार साल का रिस्क कैसे उठाएं

पहाड़ की एक मां का दर्द…..
– बेटा 12वीं पास कर गया अब क्या करें, राह अंधेरी
– सेना में जाने की परम्परा थी, चार साल का रिस्क कैसे उठाएं,
आज सुबह सो कर उठा ही था कि मोबाइल की घंटी बजी। पौड़ी से मेरी एक रिश्ते में भाभी का फोन था। उनके बेटे ने अच्छे नंबरों से 12वीं पास कर ली है। उसके पिता सेना में थे। अब नहीं हैं। तीन बहनों का इकलौता भाई है। भाभी कहती हैं कि 12वीं तो कर ली है लेकिन अब आगे क्या करें? मैंने उन्हें बच्चे के करियर के कई आप्शन सुझाए। वो कन्फूज्ड हैं।
मैंने कहा, भाभी आखिर बेटा चाहता क्या है? उदास स्वर में बोली, चाहता तो था कि पिता की तरह सेना में जाएं। तीन-चार साल से तैयारी भी कर रहा था लेकिन अब अग्निवीर योजना से मन उचाट कर गया। फौज की नौकरी को लेकर मोह भंग हो गया। कहता है कि चार साल के लिए क्या जाना। करियर कुछ और बनाउंगा। मैं तो पढ़ी लिखी नहीं हूं, कैसे उसे समझाऊं कि क्या करें।
मेरी भाभी पहाड़ की अकेली महिला नहीं है, जो इस यक्ष प्रश्न से गुजर रही है। उनके इस दर्द को समझना बहुत कठिन है। सरकारें तो समझना ही नहीं चाहती कि पहाड़ की महिला के लिए पहले ही पहाड़ सा दर्द था जो अग्निवीर योजना से और अधिक बढ़ गया।
पहाड़ में मुश्किल से ही बच्चों को शिक्षा मिलती है। गांव से कई किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल पहुंचो तो गुरुजी गायब रहते हैं और बच्चों को टयूशन पढ़ाने वाले भी नहीं मिलते। ऐसे में उनके लिए करिएर काउंसिलिंग कौन करें? अब तक पहाड़ के अधिकांश नवयुवक सेना में जाने का लक्ष्य रखते थे। कुछ होटलों में तो जो थोड़ा और पढ़ लेना चाहते थे, वो टीचर बन जाते थे। लेकिन अब टीचर बनना भी आसान नहीं। बीएड के साल बढ़ गयी और फिर टीईटी का लफड़ा। फौज में चार साल की नौकरी तो होटलों में जीवन भर के धक्के। अब पहाड़ का नौजवान जाएं तो जाएं कहां?
सच हमेशा कड़वा होता है वरिष्ट पत्रकार गुंणांनन्द जखमोला……………Uttrakhand
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