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आखिर तेरे सब्र का पैमाना क्या है, आतंकी वारदात भारत से किसी भी हिस्से में हो उसका इल्ज़ाम भारत में रह रहे मुसलमानों के सिर आता है

आखिर तेरे सब्र का पैमाना क्या है, आतंकी वारदात भारत से किसी भी हिस्से में हो उसका इल्ज़ाम भारत में रह रहे मुसलमानों के सिर आता है और उसका जुनून भारत के एक वर्ग के अंदर इस तरह पैदा हो जाता है कि वह अपने ही बीच के नागरिकों यानी मुसलमानों को हर तरह से तहे तेग करना शुरू कर देते हैं और ऐसी चेष्टा करते हैं कि बस अब मुसलमानों का सफाया कर देंगे 26 के बदले 2600 मारेंगे। यह कैसा इंसाफ है कि बेकसूर , निहत्थे लोगों को मारा जाए फिर पहलगाम आतंकवाद और इस आतंकवाद में क्या फर्क ? ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम दुश्मनी असल में हिंदू राष्ट्रवाद हो। नहीं तो क्या वजह है कि मुसलमानों से देवबंद खाली करने के लिए पड़ोस के गांव से धमकी दी जाती हैं देहरादून में पढ़ रहे कश्मीरी छात्रों को अल्टीमेटम दिया जाता हैं कि कल दस बजे तक देहरादून से चले जाएं नहीं तो जहां मिलेंगे इलाज कर दिया जाएगा। और यह सब कुछ मुल्क की सरकार के सामने किया जाता है। एफ आई आर भी दर्ज की जाती हैं मगर मुस्लिम दुश्मनी ज्यों की त्यों। ना ही आतंकवाद खत्म हो रहा हैं ना ही मुस्लिम दुश्मनी।

 

बेचारे मुसलमानो ने अपनी मस्जिदों से मुल्क की सलामती के लिए हर बार की तरह इस बार भी दुआएं मांगी और हर आंतकवादी घटना के बाद मस्जिदों से संवैधानिक तरीक़े से हर बार की तरह एहतेजाज किया गया परंतु इन तमाम कोशिशों के बाद भी स्थिति जस की तस। लाख कोशिशों के बाद भी गद्दारी का जो लेबल (पट्टा) लगाया गया है वह हटता ही नहीं। पर्यटकों को बचाते हुए कश्मीरी युवक आदिल शाह ने अपनी जान दे दी घायलों और बचे हुए पर्यटकों की मदद कश्मीर के लोगों ने हर मुमकिन तरीके से की जिसका ऐतराफ खुद पर्यटकों के परिवारों ने किया। फिर भी कश्मीरी गद्दार। इस मुल्क की आजादी के सूत्रधार यह हिंदुस्तान के मुसलमान जो भारत को अपने मादर वतन कहते हैं फिर भी पाकिस्तानी।

सांझी संस्कृति और विरासत की सदा हर तरफ से उठती है गंगा जमुनी तहजीब के नारे हर प्रयोजन में लगाए जाते है मगर क्या आज तक यह नफरत कम हुई आज हर छोटे बड़े जलूस में पुलिस की मौजूदगी में नंगी तलवारें, हथियार और मुसलमानों के खिलाफ उत्तेजक नारे लगाएं जाते हैं फिर भी कोई कारवाई नहीं होती । वीडियो बनाकर मुसलमानों को लव जिहाद के नाम पर, कभी आतंकवाद के नाम पर, कभी पाकिस्तान, बांग्लादेश और फिलस्तीन के नाम पर मारने, मिटाने की धमकी दी जाती है। सामाजिक, आर्थिक बहिष्कार का आह्वान की जाता है और मुसलमान युवकों की कभी गौ तस्करी, कभी लव जिहाद का बहाना बनाकर सरे राह लिंचिंग की जाती है और यह मुस्लिम उम्माह इन सब हालात में सब्र करते हैं और फिर मुल्क की सलामती के लिए दुआ करते रहते हैं और बार बार और हर बार कहते हैं कि यह मुल्क जितना तुम्हारा है उतना ही हमारा भी है।

ज़माने का यह दस्तूर है कि कमज़ोर को और ज़्यादा दबाया जाता हैं ताकि उसकी मज़ाहमत और आवाज़ बिल्कुल ख़त्म हो जाएं और यही सब इस वक़्त हमारे मुल्क में हो रहा हैं इसीलिए लोकतांत्रिक तरीक़े से अपनी आवाज़ भी बुलंद करनी है और अपनी खोई हुई विरासत को दोबारा हासिल करना है। इंसाफ तभी क़ायम हो सकता है जब हज़रत उमर जैसे इंसाफ परवर इंसाफ की कुर्सियों पर हो। नहीं तो इंसाफ की आस लगाना बेसूद है। वक्त तमाशाई बनने का नहीं है बल्कि जद्दोजेहद का है। चारों तरफ आग लगी हो तो जो कुछ बचता है उसको बचाने के लिए ईमान दाराना कोशिश करनी होगी ।

 

खुर्शीद अहमद सिद्दीकी,

TrueMediaHouse : सलमान अली

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