सैकड़ों सालों से हमारे देश में मस्जिद, मदरसे, मंदिर, गुरुद्वारे, खानखाए, शमशान वा कब्रिस्तान एवं चर्च आदि जनता के गाढ़ी कमाई से किए गए दान (चंदा) से बनते रहें हैं।

कौन जिम्मेदार….नीरू या पीरू ?
सैकड़ों सालों से हमारे देश में मस्जिद, मदरसे, मंदिर, गुरुद्वारे, खानखाए, शमशान वा कब्रिस्तान एवं चर्च आदि जनता के गाढ़ी कमाई से किए गए दान (चंदा) से बनते रहें हैं। इन सबका संचालन करने के लिए स्थानीय कमेटी बनाई जाती हैं और सोसाइटी एक्ट के तहत इनको रजिस्टर भी कराया जाता हैं । फिर भी इनके दशकों के संचालन के बाद भी इनको गैर मान्यता प्राप्त, गैर नक्शा पास, गैर ऑडिटेड, अपूर्ण मानकों के आधार पर सरकार इनको अवैध घोषित कर इन संस्थाओं को ध्वस्त कर देती हैं और जनता की गाढ़ी कमाई का दान जो सालाना अरबों रुपए होता हैं मिनटों में धूल में मिल जाता हैं। और बेबस, बेसहारा जनता के सामने कानून का पंजा चलता है उनके इबादत गाहे, शैक्षणिक संस्थान मलिया मेट कर दिए जाते हैं और वह ठगा सा महसूस करते हैं और इसी आवेश में अगर इस कारवाई के विरुद्ध खड़े होते हैं तो उनके खिलाफ मुक़दमा कायम होता हैं, गिरफ्तारी होती हैं और साला साल जमानत नहीं होती। रोम जलता है और नीरू बंसी बजाने में मस्त रहता हैं।
इसमें कुछ होशियार संस्थान मानकों के पूरा किए बिना भी भ्रष्टाचारी तंत्र की मिलीभगत से अपनी कमियों पर भ्रष्टाचार का लिबादा उढ़ा देते हैं और वैधता की श्रेणी में इंदराज रहते हैं चाहे कितने भी कुकृत्य करें सब माफ, सरकारी नहीं पब्लिक प्रॉपर्टी, सड़क, पार्क कुछ भी घेर ले, जनता की गाढ़ी कमाई से दान की गई राशि, सब डकार ले, सरकार के सारे अनुदान स्वयं खा जाएं बच्चों को कुछ भी न मिले, दान की राशि से अपनी जाती संपतियों को अर्जित कर ले सब माफ और सब हज़म । क्योंकि सरकार के यहां पर वैध दर्ज है।
दूसरी तरफ उसी तरह के संस्थान जो भ्रष्टाचारी परंपरा से दूर रहे और अपने आप को परंपरा का हिस्सा नहीं बना सके उनके ऊपर अवैधता और ध्वस्तीकरण की तलवार लटक गई । अब सवाल यह हैं कि सरकार कानून के अनुसार अपना काम कर रही हैं जिन धार्मिक संस्थानों को अवैध घोषित कर दिया गया है उनके संस्थापकों के पास इस अवैधता को वैधता में बदलने के पर्याप्त दस्तावेज नहीं हैं। जिस जनता ने इन संस्थाओं को बनाने में अपना खून पसीना बहाया है वह बेबस इस बर्बादी को होते देख रहे है। और कह रहे हैं कि हमने इन संस्थानों को बनाने के लिए हर प्रकार से मदद की तो इनके जिम्मेदारों ने इन संस्थाओं को कानूनी तौर से दुरुस्त क्यों नहीं किया। अरबों रुपए का धार्मिक सरमाया टूटने की कगार पर है फिर चाहे संजौली की मस्जिद हो, दिल्ली की वक्फ की 123 संपतिया, उत्तराखंड के सील्ड मदरसे, उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती इलाक़े के धार्मिक संस्थान । आखिर इनके गैर कानूनी, अवैध होकर टूटने का कौन जिम्मेदार, सरकार, संस्थाओं के जिम्मेदार या जनता जिसने वक्त रहते इस कानूनी पहलू को अनदेखा किया, हिसाब नहीं किया और सिर्फ पुण्य के चक्कर में इनसे सवाल नहीं किए ।
पुण्य की परिभाषा को भी समझना पड़ेगा। ग़सब (अतिक्रमण) की हुई भूमि के सात तबक रोज़ क़यामत ग़ासिब के सीने पर रख दिए जाएंगे यह अल्लाह की तरफ से ज़मीन घेरने वालों को अजाब दिया जायेगा फिर यह जमीन चाहे सरकारी हो, सड़क की हो, चाहे गैर सरकारी, कुएं की हो या खाती की। इस्लाम में किसी भी तरह का ग़सब ( अतिक्रमण) जायज़ नहीं, इसलिए इबादतगाहो को पाक साफ करने की जरूरत है और इसकी जिम्मेदारी सब ज़िम्मेदारों की है अगर इस गुनाह की पकड़ से दुनिया में बच गए तो अल्लाह के यहां हिसाब किताब के दिन क्या करेंगे?